आखिरकार कब बंद होगी कलम की हत्याएं? क्या देश में सच उजागर करने वाले लोगों को नहीं चाहती हैं सरकारें?
आखिरकार कब बनेगा पत्रकार सुरक्षा कानून और कब बनेगा मीडिया आयोग?
ब्रिटिश हुकूमत के समय से चली आ रही नीति "फूट डालो, राज करो" की मानसिकता आज भी प्रशासन में मीडिया के विरुद्ध बनी हुई है जोकि पत्रकारिता हित में ठीक ही नहीं है बल्कि घातक भी है जिसका नतीजा ये है कि आए दिन हो रही कलम की हत्या में विभिन्न विभाग के सिंडिकेट माफियाओं (ठेकेदारों) को अधिकारियों का खुला संरक्षण मिलता है... फिर चाहे खनन विभाग के माफिया हों या फिर अन्य विभागों के माफियाओं की क्रियाकलाप एक जैसी ही होती है, ऐसे में किसी भी प्रकरण का खुलासा पत्रकारों एवं आरटीआई कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवाने तक भी देखा जाता है... अधिकांश मामलों में राजस्व विभाग के लेखपाल एवं कानूनगो का रवैया ठीक नहीं होता है मसलन सीतापुर के पत्रकार राघवेन्द्र बाजपेई हत्याकांड में भी राजस्व विभाग के साथ ही अन्य विभाग पर शक की सुई बनी हुई है और बीते दिनों फतेहपुर में हुए दिलीप सैनी हत्याकांड में भी राजस्व लेखपाल का नाम सामने आया है और हाल में खागा तहसील क्षेत्र के सोहदमऊ राजस्व ग्राम में लेखपाल एवं कानूनगो की मिलीभगत से एक मकान का निर्माण हो गया लेकिन इनके द्वारा मांगी गई रिश्वत को जब मकान मालिक ने नहीं दिया तो लेखपाल एवं कानूनगो ने बुलडोजर तक खड़ा कर दिया लेकिन शायद इन भ्रष्ट कर्मियों को ये पता नहीं है कि कितने ऑर्डर पास हैं जिनका न्यायालय आदेश होने के बाद भी कोई ध्वस्तीकरण नहीं किया जा रहा है और भी कई ऐसे निर्माण हैं जो बंजर, तालाब, शमशान, खलिहान, गौचर, खेल मैदान सहित अन्य मद की भूमि पर बने हैं जिन्हें देखने की हिम्मत किसी की नहीं होती है।
वैसे लेखपालों एवं राजस्व निरीक्षकों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक होना चाहिए और इनकी सम्पत्ति की जांच भी होनी चाहिए जिससे पता चल जाएगा कि आखिरकार इतनी कमाई आ कहां से रही है?
Post a Comment