यस्योत्तमाङ्गभुवि विस्फुरदुर्मिपक्षा।
हंसीव निर्मलशशांककलामृणाल
कन्दार्थिनी सुरसरिन्नभत: पपात।।
जिन भगवान् शंकर के सिर पर अपनी लहरों के साथ लहराती हुई गंगा आकाश से इस प्रकार अवतरित हो रही हैं, जैसे चन्द्रमा को निर्मल मृणालकन्द समझकर उसे पाने की इच्छा करती हुई और अपने पंखों को हिलाती - डुलाती दिल्ली हंसी आकाश से सरोवर में उतर रही हो। ऐसे शीतकरण चन्द्रमा को आभूषण रूप में धारण करने वाले भगवान् पशुपति आप सबका कल्याण करें।
ए के सिंह।एंड ग्रुप आफ न्यूज चैनल।
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